$प्रीतम के दोहे
#प्रीतम के दोहे
कठपुतली के खेल से, सजा हुआ हर छोर।
जिसके हाथों आ गई, वही खींचता डोर।।
कहते हैं कुछ और कुछ, करते हैं कुछ और।
गिरगिट भी लज्जित हुआ, देख आज का दौर।।
मुखमंडल है राम का, उर रावण का मीत।
सीता दुविधा में पड़ी, किसके गाए गीत।।
घृणा-प्रेम दोनों सही, फूल-शूल अनुरूप।
शोभित गर्वित कार्य से, जैसे छाया-धूप।।
यंत्र-मंत्र से तंत्र को, रखिए ऊर्जावान।
महकें आँगन द्वार सब, गाए दुनिया गान।।
आलिंगन हो प्रेम से, वचन रूह का नूर।
प्रीतम जीवन फिर रहे, मस्ती से भरपूर।।
जैसी वाणी आपकी, वैसी बोले और।
प्रीतम मीठा बोलिए, खिले मधुर नित भौर।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’
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