*”कौआ कनागत् और सीख “*
आओ..आओ.. आओ..कागा,
आयो..कनागत्..मांड़ी ..काढ़ी,
पितृ.. पिण्ड.. जिम्मा.. बने सौभाग्यी,
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तिड़..तिड़..तिड़..जाओ..कागा,
हुए.. पिण्ड.. पूरे,
आज..अमावस्या..काढ़ी,
बैठ मंड़ेर कावँ-काँव करता कागा,
अतिथि अथवा शुभ संदेश लाना कागा,
हुई रीति पुरानी,
अब तो विडिओ कॉल पर आजा
अशुद्धि सफाई का द्धोतक है कौआ,
कर्कश आवाज़ नहीं है धोखा,
कोयल जैसी मधुर भाषी,
घोंसले का प्रयोग कर वंश बढ़ाती,
उपयोगिता इस धरा पर हर चीज़ में होती,
आओ..आओ..कागा..आया.. कनागत्..
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तिड़..तिड़..तिड़..जाओ..कागा,
शारदीय नव-रात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं