कोरोना
आज स्तब्ध रह गया सकल विश्व छाया कैसा कहर है
विषाणु का फैलता मकड़जाल मानवता पर बना काल है
आधुनिकता की दौड़ में जीवन और मृत्यु से जूझ रहा
हाय मानव जीवन कैसा कुछ तो प्रकृति नियम विरुद्ध रहा
स्वतन्त्रता के पंख समेट मानव चार दीवारों में कैद हुआ
पशु-पक्षी रहें स्वतन्त्र क्या निज कर्मों पर खेद हुआ
हाट- बाजार सब सूने रह गये मानव जीवन में बढ़ गई दूरिया
मन्दिर दर्शन भी अब दूर से हालातों की बंधी हुई बेड़ियां
रोजगार सब ठप्प हुए मजदूर बेबस और लाचार हुए
शहर से लेकर गांव तक कोरोना के शिकार हुए
अपनो संग समय व्यतीत कर जीवन में रस भर आया
सामाजिक जीवन का मर्म हमें समझाने आया
प्रकृति सौंदर्य से परिपूर्ण स्वच्छ जल परिवेश है
मानव जीवन को देता स्वच्छता का संदेश है
अब संकल्प यहीं स्वच्छता को जीवन ध्येय बनाना है
भारतीय संस्कृति नमस्कार अभिवादन को अपनाना है
अब समाधान इस व्याधि का कर जड़ से इसे मिटाना है
विषधर भुजंग को अब फन से अब हमें कुचलना है
डोर स्वच्छता की बांधे मास्क लगा संयम अपनाना है
विश्वास और विज्ञान से देश को वायरस मुक्त बनाना है
नेहा
खैरथल (अलवर )
राजस्थान