कैसे भुल जाऊं ज़ख्म वे
कैसे भुल जाऊं ज़ख्म वे,
जो दिये तुम्हारे पुर्वजों ने,
विलग करना चाहा था हमें,
हमारे ही धरती से।
तहस नहस किया हमारे धर्मों को,
दर्द जो दिया दिल को,
उसे कैसे भुल जाए हम??
तोड़ फोड़ किया हमारे मन्दिर पाठशालाओं में,
खुद तो अनपढ़ थे,
हमें भी घिच ले जाना चाहा उस राहों में।
सोने की इस चिड़िया को,
तहस नहस कर डाला,
रहने को जगह क्या दिया,
लुट लिया हमें ही तुमने,
कैसे करें भरोसा तुमपे,
जब तुम ना कभी हो सके हमारे,
इस मिट्टी का तो खाते हों,
पर, इसके ना हो सकें तुम कभी,
कैसे भुल जाऊं चिख,
वे माता बेहनो का,
मरने पर जिन्हें मजबूर किया,
तुम्हारे पुर्वजों के टोली ने,
कैसे भुल जाऊं वे ज़ख्म सभी,
जो दर्द देता हर पल हमें??