*कैसे कैसे बोझ*
कैसे कैसे बोझ
बोझ लेकर चलना जीवन की कला है,
कभी खुशी, कभी मजबूरी भरा है।
अपनों का हो बोझ ,
तो खुशी से उठाते हैं।
दूसरों का बोझ ,
मजबूरी बन जाता है।
मन से उठाया बोझ,
खुशी दे जाता है।
आत्मा पर बोझ,
जीवन दूभर कर जाता है।
बोझ कुछ दिखते हैं ,
कुछ अदृश्य ही रहते हैं।
सीखा जो इनके साथ जीना,
मानव साधक बन जाते हैं।।
आभा पाण्डेय