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18 Jan 2021 · 1 min read

कैसे कहे कितने

कैसे कहें कितने मजबूर हुए है हम बेरोजगार
नीचता की हद से भी निचे गिरा अपना किरदार

आईना देखते ही शर्मिंदा करने लगा हमें मियां
मौत से पहले जिस्म छोड़ के चला है किरायेदार

सियासत करने चला आज मैं भी मामूली प्यादा
देश बेच खाना मुझे बनाके जोड़तोड़ से सरकार

कल से कोई बुरी खबर नहीं सुनेगा इस देश में
बन्द करो समाचार चैनल रद्दी में बेचो अखबार

बहुत हुआ भाई भाई की बातें कहती घरवाली
तोड़ो संयुक्त परिवार खड़ी करो आँगन में दीवार

ज़माना पहुंच गया इंटरनेट की हंसी दुनिया में
सुस्त पड़ने लगी क्यों विकास नाम की रफ़्तार

बहुत हुआ मान सम्मान अब पैसा है भगवान
धर्म के ठेकेदार बनकर चलानी धर्म पे तलवार

देख रहा है मुंगेरी के हंसी सपने अशोक क्यों
काम धाम नहीं कोई खत्म हो गया क्या रोजगार

रिश्वत खोरी भ्र्ष्टाचार करके जहुन्नम में जायेगा
ऐसी कमाई पर ठोकर लगेगी जूते पड़ेंगे चार

उठाके चल दफा होजा दुकाँ कविता की अपनी
नहीं बिकेगा माल तेरा नहीं होगा आदर सत्कार

माँ भारती ने पाला तुम सबको गुलामी में भी
माँ को पाल नहीं सके हिन्दूमुस्लिम हुए बेकार

मंदिर में भगवान तो मस्जिद में खुदा मिल जाए
सीखा दो हमको गीता और कुरान के अशआर
अशोक सपरा की कलम से दिल्ली से

Language: Hindi
280 Views
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