कैसी यह रीत
रिमझिम बारिश में
खिल रही धूप,
वो देखो बन गया
फिर इन्द्रधनुष।
सूरज की किरणें हों
जैसे कोई राजदूत,
बादलों में छुपते हुए
लगते बड़े अद्भुत।
मोर के नाच सुघड़
काली वो घटाएँ,
मन को सुकून देती
अदृश्य हवाएँ।
एक मधुर रागिनी सी
कोयल के गीत,
कोई तो पुकार रहे
सुनो मेरे मनमीत।
सरगम के मेले में
सतरंगी प्रीत,
कौन ये बताए भला
कैसी यह रीत?
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।