कैसी यह मुहब्बत है
कैसी यह मुहब्बत है दोस्तो
कट रही रोज टुकडों में दोस्तों
जब प्यार था तब घर वार छोड़ दिया
आज उस ने ही यार प्यार छोड़ दिया
दिल से उतार फैंक दो उसे तुम
जिसने तुझे दिल से निकाल दिया
सौ टुकड़ो में कटने से अच्छा है
कि अकेले जिंदा रह लेना दोस्तों
जिंदगी जीने की सौ वजह ढूंढ लेना दोस्तों
तुम्हारे साथ जो हो रहा उस से उबर कर
दूसरों के लिए थोड़ा जी लेना दोस्तों
गम न करना मुहब्बत गवाने का जरा भी
मिलती नही यह जिंदगी दुबारा तो
कुछ अपनी फिक्र कर लेना दोस्तों
संध्या चतुर्वेदी
मथुरा,उप