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6 Apr 2022 · 1 min read

कैसा है ये तंत्र हमारा

कैसा है ये तंत्र हमारा
जन-जन के मन खौफ समाया।
देख रहे हैं कई बुराइयाँ
खौफ से खामोशी अपनाया।।

कृषि प्रधान इस देश में मरते,
जन-जन का जो पेट हैं भरते।
कृश-काया पर चीर का टुकड़ा,
कौन सुनेगा इनका दुखड़ा।।

पास फटक न पाई शिक्षा,
बच्चे सब अनपढ़ गंवार हैं।
कैसे पीले हाथ करेंगे,
बेटी भी सर पर सवार है।।

फसलें बहती बाढ़ में सारे।
सूखा तो बेमौत ही मारे।
जाने कैसा ये अभिशाप है,
जिसका कोई न माई बाप है।।

लुट जाती हैं बेबस अबला,
माँ दुर्गा के देश में।
घूम रहे आजाद लुटेरे,
हितकारी के वेश में।।

चारों ओर ही दुःशासन हैं,
लेश मात्र न अनुशासन है।
होड़ मची है घोटाले में,
शोषण जनता के पाले में।

सच की राह पे चलते हैं जो,
दर-दर ठोकर खाते हैं।
बेईमानी का साथ न दे तो,
अपनी जान गँवाते हैं।

नैतिकता अब कहाँ खो गई,
सहम के मानवता भी सो गई।
सर्वोदय, गाँधी का सपना,
पूरा कभी न होगा अपना।।

भागीरथ प्रसाद

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 126 Views
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