कैसा समाज
महात्मा गांधी की आत्मा
सिसक रही होगी आज
भारत के राजनीतिकों ने
गढ़ दिया कैसा समाज
जाति,पाति और धर्म की
खाई लेती जा रही विस्तार
संसद और विधानसभाओं
में अब दागियों की भरमार
धनिकों के सेवक बन गए
हैं सियासत के सभी सदन
किसान,मजदूर और बेकार
युवाओं का सुनते नहीं रुदन
स्थानीय निकाय बन गए हैं
बस भ्रष्टाचारियों की चरागाह
उन्हें सुनाई पड़ती नहीं कभी
पीड़ित नागरिकों की कराह
बाजारों ने निगल ली गांवों के
युवाओं की मानसिक शक्ति
ऐसे में उनमें उपज रही तेजी
से गांवों के प्रति अजब विरक्ति
गांवों की चिंता कौन करेगा
आज का यह बड़ा सवाल
गांवों के विकास के बिना कैसे
हो सकेगा अपना देश खुशहाल