कुप्रथाएं…….एक सच
शीर्षक – एक कुप्रथा
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आज हम एक प्रथा या एक कुप्रथा के साथ साथ समाज और समाजिक सोच की कुछ कुप्रथा पर विचार कर रहे हैं और हम सभी एक कुप्रथा के साथ साथ बहुत सी सच और सही एक कुप्रथा में पढ़ते हैं…….
भारतीय समाज में बहुत सारी कुरीतियां मध्यकाल से चली आ रही है।भारत के कुछ प्रमुख समाज सुधारकों में राजा राम मोहन रॉय, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, ज्योतिराव फुले, बीआर अंबेडकर, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, स्वामी दयानंद सरस्वती, मदर टेरेसा, नारायण गुरु और पेरियार ईवी रामासामी शामिल हैं।आज हम सभी को समाज में जागरूकता की लहर की शुरूआत ही युवा वर्ग से होनी चाहिए। हाई स्कूलों और स्नातक कॉलेजों में सामाजिक बुराईयों को दूर करने संबंधी वाद-विवाद एवम् भाषण प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाना चाहिए। उन्हे शिक्षा प्राप्त करने, दहेज न लेने, दहेज न देने, अपने आस-पास बाल विवाह को रोकने का संकल्प दिलवाना चाहिए। जिससे वर्तमान परिदृश्य में मेरे अनुसार सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक समस्या भारत राष्ट्र (आर्यवर्त्त) के संदर्भ में जातिवाद, भाषावाद एवं क्षेत्रवाद हैं। जिसके कारण भारत का समाज प्रदुषित बना हुआ है। राजा राम मोहन राय, दयानंद सरस्वती, रानाडे, ज्योतिबा फुले, स्वामी विवेकानंद, एनी बेसेंट, सर सैयद अहमद खान, पेरियार और नारायणगुरु जैसे कई प्रमुख लोग भारत में सामाजिक सुधार आंदोलनों का हिस्सा बने। समाज में समूह जो आर्थिक रूप से वंचित हैं, अपनी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ हैं, बेघर हैं, या भूखे हैं, भारत में कमजोर वर्ग (vulnerable groups meaning in india in hindi) माना जाता है। कमजोर बच्चे, वरिष्ठ नागरिक, महिलाएं और ऐसे ही अन्य वंचित समूह कमजोर समूह (vulnerable groups in hindi) के अंतर्गत आते हैं। मध्यकाल से ही पर्दा प्रथा , बहु-विवाह,सतीप्रथा, विधवाओं के प्रति उपेक्षा का बर्ताव ,जातिवाद, सांप्रदायिकता एवं दहेज प्रथा प्रमुख है। सती प्रथा हिंदुओं में विधवाओं को जिंदा दफनाने की प्रथा है। अपराध, मद्यपान, मादक द्रव्य व्यसन, वेश्यावृत्ति, टूटते परिवार, बेरोजगारी, गरीबी, मानसिक रोग इत्यादि सामाजिक समस्याओं के ही उदाहरण हैं। समस्या वह दशा या स्थिति है जिसे समाज हानिकारक मानता है तथा उसके समाधान की आवश्यकता महसूस करता है। सामाजिक समस्या का सम्बन्ध सामाजिक संरचना से होता है। यह एक सामाजिक बुराई थी जो भारतीय समाज में व्याप्त थी । विलियम बेंटिक के गवर्नर जनरलशिप के तहत 1829 के बंगाल सती विनियमन द्वारा सती प्रथा को 1829 में अवैध बना दिया गया था। हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह अधिनियम, 1856, कन्या शिशुहत्या रोकथाम अधिनियम, 1870, और सहमति की आयु अधिनियम, 1891 सहित हिंदू महिलाओं के खिलाफ हिंसा से जुड़े अंतर्संबंधित मुद्दों को ब्रिटिशों द्वारा समझे जाने वाले अंतरसंबंधित मुद्दों का मुकाबला करने के लिए अन्य कानूनों का पालन किया गया। इन बुराइयों को दूर करने के लिए समाज सुधारकों ने समय समय पर आंदोलन चलाया। बाल विवाह, सती प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, शिशुहत्या , उत्तर वैदिक काल से लेकर 19वीं शताब्दी तक मौजूद सामान्य सामाजिक बुराइयाँ थीं ।सामाजिक बुराइयों या सामाजिक मुद्दों को किसी भी अवांछनीय स्थिति के रूप में संदर्भित किया जाता है जिसका समाज या समाज के एक वर्ग द्वारा विरोध किया जाता है। कुछ प्रमुखबाल श्रम, बाल विवाह और दहेज प्रथा सामाजिक बुराइयाँ हैं। सभी दंडनीय अपराध हैं. मुद्दे जाति व्यवस्था, गरीबी, दहेज प्रथा, बाल श्रम, धार्मिक संघर्ष आदि हैं। सती, छुआछूत, बाल-विवाह, तिन तलाक वगैरा कुप्रथा समाज में बरसों से थी, जो कालांतर में बंद हो गई।समाज या व्यक्ति को हानि पहुँचाने वाली अनुचित रीति ; कुप्रथा ; निंदनीय प्रथा सभी प्रथा कुप्रथा प्रचलित थी।
हम सभी पाठकों को एक कुप्रथा के साथ साथ हम सभी एक कुप्रथा के साथ सोचे और आज हमें जागरूकता के साथ अपना जीवन और जिंदगी सही बनानी चाहिए।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र