कुटिल वक्र रेखाऐं
कुटिल वक्र रेखाएँ उरतल,
खिंची,मिटी न कभी मिटाऐ,
ताक रही मृत्यु जीवन को,
सत्य किंतु उर को न भाऐ।
पश्चाताप प्रवृत्ति दृग में,
नहीं तनिक छविमान कहीं,
जीवन में प्रतिशोध मात्र ही,
समाधान भी नहीं कभी।
अपमान विस्मृति कठिनकार्य,
जीवन में अध्याय अरुचिकर,
समयान्तर से शायद सम्भव,
किन्तु प्रतीक्षा निश्चय कटुतर।
क्षमाशीलता मात्र विकल्प,
ईश्वरीय वरदान कदाचित,
मन के कष्टों का भार घटाती,
जीवन के दिन वैसे भी अल्प।
–मौलिक एवम स्वरचित–
अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ (उ.प्र.)