*कुछ भी नहीं पाया ठहर (गीत)*
कुछ भी नहीं पाया ठहर (गीत)
______________________
खो गया सब सृष्टि में, कुछ भी नहीं पाया ठहर
(1)
साथ दादा और दादी, कुछ दिनों तक ही रहे
गोद में ले प्यार के कुछ, शब्द ही हँसकर कहे
याद बचपन की बहुत, आती सभी को याद कर
(2)
सब साथ थे माता-पिता, मामा बुआ ताई
संबंध यह इतने घने, हों ज्यों कलम-स्याही
आधार जीवन के सदा,भाई-बहन परिवार घर
(3)
आकाश में तारे हजारों, देखने में आ रहे
कौन हैं इनमें हमारे, तय नहीं कर पा रहे
पास थे जो दूर से ही, आ रहे हैं अब नजर
खो गया सब सृष्टि में, कुछ भी नहीं पाया ठहर
————————————-
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451