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31 May 2024 · 1 min read

कुछ तो नहीं था

ना जाने
ऐसा क्यों लगता रहा
कुछ तो है पर
कुछ तो नही था

कोई पीछे खड़ा है
ये वही भूत है जो
कई दिनों से
पीछे पड़ा है

दौड़ा दौड़ा प्रकाश
की तरफ बढ़ता
पीछे मुड़ता
उस परछाई को गायब देखता

वो भूत नहीं
भर्म था
जो बचपन के सफर में
हमदम था

कुछ तो नही था
उन आंखों में
उन छली मुस्कानों में
जिसमे ढल गया
प्यार रूपी सागर में
बह गया

ये आंखे महज
आंखे होती है
गीता, कुरान न
संदेशदासक होती है

फिर खुद को ठेस पहुंचाता
क्यों फिरता
ये जीवन समर्पण के लिए है
व्यर्थ ही किसी पे
क्यों मरता फिरता

कुछ तो नही था
उन बातो में
बहस कर महाभारत
रच दिया

आत्मगौरव , अहिंसा , सत्य
के राहों के सिवा
न कदम
आगे बढ़ाना होगा

बेअर्थी बातों को भूल
अर्थ में ढल जाना होगा

ऐसे कितने कुछ है
जो कुछ नहीं है
उन्हें भूल जीवन के नए
रंगों को अपनाना होगा

Language: Hindi
23 Views
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