किस्सा–द्रौपदी स्वयंवर अनुक्रमांक–07
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा–द्रौपदी स्वयंवर
अनुक्रमांक–07
वार्ता–स्वयंवर को अब सोलह दिन बीत जाते हैं लेकिन कोई भी राजा स्वयंवर की शर्त पूरी नहीं कर पाया। अन्त में राजा द्रुपद भगवान श्री कृष्ण के पास जाते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि हे महाराज आप तो सब जानते हैं,कृपा करके मुझे ये तो बता दो कि इन राजाओं में से कोई इस शर्त को पूरी कर पाएगा या नहीं।
टेक–सभा बीच मै मनुष्य धनुष नै ठावण आळा कौण सै।
महाराज आज दयो बता सुता नै ब्याहवण आळा काैण सै।।
१-आज काल करते करते दिवस बीतगे सोळाह हो,
लड़की के स्वयंवर का मच्या दसों दिशा मैं रोळा हो,
पङ्या गैब का गोळा इसनै चलावण आळा कौण सै।
२-सोळाह दिन बीत गए सरया नहीं काज हो,
पाप का समुन्द्र भरग्या बेथाह बेअन्दाज हो,
डूब रह्या जहाज बल्ली लावण आळा कौण सै।
३-लड़की रही कुँवारी म्हारी के दुनिया मैं जीणा हो,
किसनै दे दे दोष बता जब अपणा खोटा कीणा हो,
खाणा पीणा छुटग्या धीर बंधावण आळा कौण सै।
४-सेढु लक्ष्मण शंकरदास गुरु गोपाल बिना,
कहै केशोराम कुंदनलाल गाणा सूना सुरताल बिना,
नंदलाल बिना इसे छन्द रशीले गावण आळा कौण सै।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)