किस्मत है ऐसी शै जो चमकती ज़रूर है
——-ग़ज़ल—–
माना कि ये जवानी महकती ज़रूर है
लेकिन गुमाँ में हो तो भटकती ज़रूर है
उल्फ़त हो लाख शमअ को परवाने से मगर
शर्मो हया के मारे झिझकती ज़रूर है
आएगी जब बहार ये भौरों के साथ में
बागों में तब कली भी चटकती ज़रूर है
माँ-बाप की जो दिल से ख़िदमत करेगा तो
किस्मत है ऐसी शै जो चमकती ज़रूर है
कितना भी एहतियात करो तुम वबा से पर
तलवार सबके सिर पे लटकती ज़रूर है
माँ-बाप का जो क़द्र करेगा कभी नहीं
औलाद वह सभी को खटकती ज़रूर है
लग जाए आग इश्क़ की दिल में किसी के तो
प्रीतम दबाने से ये भड़कती ज़रूर है
प्रीतम श्रावस्तवी