किशोरावस्था मे मनोभाव
बाल्यावस्था और युवा अवस्था के बीच की अवस्था को किशोरावस्था कहते हैं। यही वह अवस्था होती हैं जहा बच्चो को सही मार्गदर्शन और प्रेरणा की सबसे ज्यादा जरुरत होती हैं। उनके भविष्य का निरधारण और निर्माण कार्य की आधारशिला इसी अवस्था मे होती हैं। किशोरावस्था जीवन का वह पड़ाव या पायदान होता है, जहां पर हम बाल्यावस्था को समाप्त कर या पूर्ण कर चुके होते हैं परन्तु पूर्ण युवा अवस्था को प्राप्त नही कर पाते है परन्तु शारीरिक बदलाव के कारण स्वयं को युवा समझने लगते हैं। बचपना पूरा खत्म नहीं हुआ होता और युवा अवस्था का अंकुर फूटना शुरू हो जाता है।
शारीरिक संरचना के बदलाव और अपने अंदर संपूर्णता महसूस होने के कारण हम किशोरावस्था मे अपने सबसे करीबी परिवार के बड़े सदस्यों को अपने ऊपर ज्यादा ध्यान देने से परेशानी महसूस करने लगते हैं और अपनी आजादी को खतरे में समझने लगते हैं। हमें लगने लगता है कि हम इनके पराधीन हैं। हम स्वयं को निर्णय लेने के योग्य समझते हैं परंतु अपना कोई भी निर्णय ले नहीं पाते हैं। हमें अपने बड़े सबसे बड़े शत्रु लगने लगते हैं और पराए अपने शुभचिंतक महसूस होने लगते हैं। हमारे माता पिता और परिवार जन को यह बात ज्ञात होती है परंतु उनका अनुभव हमसे ज्यादा होता है और वह यह भी जानते हैं कि यह इस आयु का दोष मात्र है, जो हमें आजादी की, विरोध की, विद्रोह की राह को दिखाती हैं। बस कैसे भी हमे इस किशोरावस्था को सही दिशा व सही राह की तरफ मोड़ना है और सही मार्गदर्शन करना है। वह भी जोर जबरदस्ती से नहीं अपितु स्नेह से, प्रेम से, मित्रवत बनकर और अपनी ममतामई आंचल की छांव को इन किशोरों के साथ अपने अनुभव साझा करके। इस कार्य के लिए सबसे बड़ा दायित्व जाता है हमारी माताओं को क्योंकि बच्चों को माँ का स्नेह ही दिशा प्रदान करता है, फिर चाहे वह सही दिशा हो या गलत दिशा हो।
इस अवस्था में किशोरों को लगता है कि:-
हम सही और समझदार हैं, हम आजादी के हकदार हैं।
हम ही तो अब कर्णधार हैं, हम खुद ही जीवन के आधार हैं।।
हम जो करे वही सही हैं, हमारे बड़ो को कुछ ज्ञान नही हैं।
हम कच्चे नही पके पडे हैं, हमारे समछ क्यो बड़े खडे हैं।।
बुरा ना मानो ये फ़ितरत होती, उम्र यही जहा नादानी होती।
समय के रहते प्रेम प्यार से, मार्ग सही वो राह दिखाओ।।
किशोर सही रूप मे क्या हैं?
किशोर ऊर्जा की परिचायक, किशोर जोश के हैं धारक।
किशोर भविष्य हैं देश धर्म के, किशोर तो रक्षक राष्ट्र धर्म के।।
किशोर आन अभिमान कुटुंब के, किशोर मान सम्मान राष्ट्र के।
किशोर ही तो पहचान बनाते, किशोर जगत मे स्वाभिमान राष्ट्र के।।
किशोर को क्या देना हैं?
किशोरावस्था ही ग्रहण कराती, संस्कार समझ और सारांश जगत का।
किशोरावस्था ही प्रेरित करती, बनना क्या है निश्चित करती।।
किशोरावस्था की प्रेरणा हममे, राम कृष्ण और भरत बनाती।
किशोरावस्था की शिक्षा हमको, प्रताप, शिवा और वीर बनाती।।
किशोरावस्था का मार्गदर्शन ही, झांसी की रानी और अहिल्याबाई होलकर बनाती।
किशोरावस्था की शत्रु माँ और किशोरावस्था की मित्र भी माँ हैं।।
किशोरावस्था का ज्ञान भी माँ और किशोरावस्था का अज्ञान भी माँ हैं।
किशोरावस्था ही निर्धारित करती, माँ का तुम पर प्रभाव ही क्या हैं।।
किशोरावस्था वो नाजुक दौर है, समझो पंछी के पंख उगे हैं।
किशोरावस्था अनमोल बहुत हैं, समझो जीवन का सार यही हैं।।
यह वह अवस्था होती है जहां बच्चों को यह बोध कराया जाता है कि तुम अब बच्चे नहीं हो और यह भी बोध कराया जाता है कि तुम अभी बड़े नहीं हो, जो कि उन्हें और आक्रोशित करने पर मजबूर करता है, परंतु उन बच्चों को यह भी याद रखना चाहिए कि समय-समय पर उन्हें यह उपाधि भी मिलती रहती है कि अब मेरा बच्चा बड़ा हो गया है, अब मेरा बच्चा छोटा नहीं है, समझदार हो गया है। परिस्थितियों के अनुरूप आपको यह बोध कराया जाता है। जैसे गाय के बछड़े के नाथ डाली जाती है उस समय वह किशोरावस्था में प्रवेश कर चुका होता है फिर धीरे-धीरे समय के साथ-साथ उसके कंधों पर जिम्मेदारी का बोझ डाला जाता है, खाली बुग्गी मे बिना मतलब के घुमाया जाता है जिससे उसे जिम्मेवार होने का एहसास होने लगे। युवा अवस्था आते-आते उसे पूर्ण जिम्मेवार बनाकर काम लिया जाता है। वैसे ही तो बच्चे होते हैं जो माँ-बाप कभी डांटते हैं गुस्सा करते हैं यहां तक कि पीटते भी हैं (जो कि आजकल नहीं होता), परंतु समय आने पर प्रेम और प्रशंसा भी करते हैं अपना पेट काटकर अपने बच्चों को उत्तम आहार जो उनको उस समय जरूरी होता है लाते हैं और बड़े मन से खिलाते भी हैं। इन्हीं बच्चों में अपना भविष्य भी देखते हैं, यह डांट, गुस्सा, ताड़ और प्रेम उस धूप और छांव की तरह है जो हमें सभी भावनाओं के साथ जीवन में जीना सिखाती है और हमारे आधार को मजबूती प्रदान करता है।
जीवन में हमें सदैव यह स्मरण रखना चाहिए किशोरावस्था में हमारे माँ-बाप से ज्यादा हमारा कोई भी शुभचिंतक नहीं हो सकता उनकी कड़वी और मीठी बातों को भी प्रसाद स्वरूप ग्रहण करना और उनका हृदय से सम्मान करना उनके मान-सम्मान का सदैव ध्यान रखना। इस आयु की आजादी भी क्षणभंगुर है जो कुछ समय में खत्म हो जाती है फिर रह जाता है पछतावा, पश्चाताप और अफसोस जिसे कभी बदला नहीं जा सकता।
किशोरावस्था में ध्यान रखने वाली बातें जिन की तरफ बच्चों का सबसे ज्यादा आकर्षण होता है वह होता हैं विपरीत लिंग की तरफ। हमारा झुकाव या जिज्ञासा जो किशोरावस्था का सबसे बड़े दोष होते हैं। यह आकर्षण हमें पथभ्रष्ट भी कर देता है और हमारे अंदर की सभी योग्यताओं पर भी विराम लगा देता है। जिसे प्राय ये किशोर प्रेम का नाम देते हैं परंतु यह प्रेम नहीं मात्र एक आकर्षण होता है जो कि कुछ समय के लिए ही होता है और अपनी इच्छा पूरी होने के साथ ही यह आकर्षण समाप्त हो जाता है। जिस प्रेम का नाम लेकर हम इस आकर्षण को हम जन्म देते हैं, उस प्रेम को नाहक ही बदनाम कर देते हैं क्योंकि प्रेम तो नाम ही त्याग का होता हैं, बलिदान का होता हैं और समर्पण का होता हैं, जहां काम हो, वासना हो, अपमान हो और बदनाम हो वह प्रेम का रूप हो ही नहीं सकता है। बच्चों की इच्छा अनुसार उनको उनकी रूचि के अनुरूप कार्य क्षेत्र चुनने में उनका सहयोग करें उनके ऊपर कोई भी जबरदस्ती ना करें परंतु शांत चित्त उन्हें समझाएं जरूर। उनको अधिक से अधिक अपना सानिध्य प्रदान करें उनकी जिज्ञासाओं को सुने समझे और उनका निवारण करें। उन्हें आत्मसम्मान, स्वाभिमान, मान मर्यादा और स्वयं की रक्षा के विषय में समय-समय पर ज्ञान भी दे और चर्चा भी करें। समाज में होने वाली घटनाओं से परिचित भी करें और उनके विचार भी सुनें। उनको अंदर ही अंदर घुटने ना दें मां के साथ उनका व्यवहार दोस्ती पूर्वक होना चाहिए और पिता का सम्मान व डर उन्हें करना आना चाहिए। कभी-कभार समय निकालकर किसी वरिष्ठ सदस्य को परिवार या मोहल्ले के सभी किशोरों को बुलाकर संगोष्ठी करनी चाहिए उनके अंदर के बदलावों को समझना और जानना चाहिए वह किस दुविधा में तो नहीं यह भी समझना चाहिए उनके अंदर राष्ट्रप्रेम, कर्तव्यनिष्ठा, धर्म की जानकारी और अपने इतिहास की जानकारी जैसे विषयो पर चर्चा करनी चाहिए। यह हमें भी ध्यान रखना चाहिए कि किशोरावस्था वो हीरा होता है जिस पर लगी एक भी खरोंच उसके भविष्य को प्रभावित करती हैं। इनका चरित्र निर्माण करना हम सभी की जिम्मेदारी होती है और यह हमारा दायित्व भी होता हैं। इनको आजादी का असली रूप समझाना और जिम्मेदार बनाना हमारा प्रथम लक्ष्य होना चाहिए।
धन्यवाद
ललकार भारद्वाज