* का बा v /s बा बा *
का बा v/s बा बा
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का बा का बा रटते-रटते चढ़ गयी चने की झाड़ पर,
टोंटी वाले कब लाओगे संसद के दुअरिया।
बेदर्दी कजरी ने मोहे फांसा भ्रम की जाल में
दौलत की चिंगारी भर दी छोटे से दिमाग़ में।
कुद पड़ी मैं रण में लेकर सपने बंगला कार के
डूब रही हूँ आँसू लेकर उम्मीदें सब हार के।
अब पछताऊँ रोऊँ छलके नैनों की गगरिया
भरी सभा में खुल गई मेरी मंशा की गठरिया।
का बा का बा रटते-रटते चढ़ गयी चने की झाड़ पर
……..।
मुक्ता रश्मि
मुजफ्फरपूर (बिहार