कान्हा घनाक्षरी
कान्हा घनाक्षरी
नया हर दिन रहे, नई हर प्यास रहे
भोर के क्षितिज का, अभिराम कीजिये
मन में तरंग रहे, तन में उमंग रहे
घेरे न उदासी फिर, राम राम कीजिए
दूर दूर ये दिशायें, कहती कुछ खास जी
चलते रहो निशिदिन, न आराम कीजिए
राम सा चरित्र रख, कृष्ण सा पवित्र दिख
आये हो जगत में तो, नेक काम कीजिए।।
सूर्यकांत द्विवेदी