क़ुदरत : एक सीख
ये क़ुदरत का निज़ाम तो ज़रा तुम देखो।
हम से हमेशा क्या कुछ नहीं कह जाता है।
आसमान में मंडराते ऊँचे बादलों को देखो।
ख़ुद अंधे-काले हो कर भी आगे बढ़ जाता है।
दूर दूर तलक फैले इस समन्दर को तो देखो।
चट्टानों से टकड़ा कर भी गीत नया गा जाता है।
ऊँचाइयों पे उड़ते प्यारे-प्यारे पंछियों को देखो।
दाना-पानी की तलाश में दूर-दूर निकल जाता है।
इन झगड़ते पंछियों के कभी भोलेपन को देखो।
एक कव्वे के मौत पे पूरा बारात चला जाता है।
इन वादियों में खड़े पहाड़ और पर्वत को देखो।
हर मौसम में दिन ओ रात वहीं डंटे रह जाता है।
फल से लदे पेड़ के झुके-झुके अंदाज़ को भी देखो।
जबकि आँधी में खोखला पेड़ पहले गिर जाता है।
इंसान न हो कर भी इन सब की इंसानियत तो देखो।
पर इंसान इंसान हो कर भी इंसान नहीं रह जाता है।