कहाँ से चले आते हो
दहक रहा संसार फिर
क्यों नहीं जल जाते हो।
जाने करने अत्याचार
कहाँ से तुम चले आते हो।।
माँ-बहन-बीबी और बच्चे
सब अपने ही तो हैं।
जाने फिर क्यों तुम सदा
उन्हें बेरहम सताते हो।।
जाने करने अत्याचार
कहाँ से तुम चले आते हो।।
आबरू सबकी अपनी प्यारी
तुम क्यों ठुकराते हो।
बेटी कभी बहन किसी की
कभी लाज चुराते हो।।
जाने करने अत्याचार
कहाँ से तुम चले आते हो।।
पीड़ा देना ज़हन जलाना
आँखन बरखा जलभर जाना।
फूटी आँखों नहीं सुहाना
कृत् कैसे तुम कर जाते हो।।
जाने करने अत्याचार
कहाँ से तुम चले आते हो।।
धन-दौलत मोहब्बत शौहरत
क्षण-भर सुख पराई औरत।
क्यों जीवन भर की मेहनत
पल भर मय खो जाते हो।।
जाने करने अत्याचार
कहाँ से तुम चले आते हो।।
शर्मसार न करो ये जीवन
उदित चाँद और सूरज है।
मयंक सुबह से रात तलक
क्यों अंधियारा लाते हो।।
जाने करने अत्याचार
कहाँ से तुम चले आते हो।।
रचयिता: के.आर.परमाल ‘मयंक’