कस्तूरी इत्र
ना रिश्ते में बांध मुझे, माला के मोतियों की तरह,
मैं कस्तूरी इत्र हूँ, मुझे उड़ने दे बेहद मुश्क की तरह।।
जिस्म महका मुझसे अपना, किसी भी फूल की तरह,
मैं कस्तूरी इत्र हूँ, खुद को उड़ने दे तू भी भौंरे की तरह ।।
जहाँ जहाँ जाता हूँ, साँसों में धीमी आग बन जाता हूँ,
जज्बात सुलगते हैं और उड़ते हैं सुगंधित धुऐं की तरह।।
ये जिस्म है जज्बातों का, दिल पत्थर नहीं है तेरा,
ठंडी पड़ी साँसों को तू भी, धधकने दे अंगारों की तरह।।
ये इत्र फूल से नहीं, खूबसूरत नाजुक बदन से मैंने पाया है,
बहुत खाक छानी है इसे पाने के लिए, रेगिस्तानी हिरन की तरह।।
prAstya…..