कशिश
रास्ते कुछ जाने पहचाने से पर
राहनुमा अनजाने से ,
मंज़िलें भी कुछ पहचानी सीं पर
कुछ बदली- बदली सीं ,
लगता है हक़ीक़त से दूर ख़्वाबों के
शहर आ गया हूँ ,
अपनो की खोज में गैरों के
बीच आ गया हूँ ,
अपनों की जुस्तुजू ,
कुछ अज़ीज़ों से मुलाक़ात की कशिश
मुझे यहाँ ले आई है ,
बेताब दिल की आरज़ू फिर एक बार
मुझे यहाँ ले लाई है ।