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16 Apr 2019 · 1 min read

कविता

मन में कपट कटार है मुख पे झुठी मुस्कान
गली-गली में घूम रहे भेडिए बन इंसान,

नफ़रत सींची रात -दिन ,खेला खूनी खेल
आग लगाकर डाल दी खुद ही उस पर तेल,

जनता का जीना किए थे पल-पल जो दुश्वार
आज दिलाने आए वो रोटी, कपडा, रोजगार,

आधी रात की आज़ादी की मुश्किल हो गयी भोर
भाग्य विधाता बन गए जब से डाकू ,ढोंगी ,चोर

बनी द्रौपदी देखो फिर से कोई नारी आज
दौर दुशासन का आया लूट रहा वो लाज,

बिना खाद, पानी बढ़ा , नभ तक भ्रष्टाचार
जाति धर्म के नाम पर है वोटों का व्यापार,

औरों पर आरोप मढ धो रहे अपने दाग़
आस्तीन में पल रहे हैं कुछ ऐसे भी नाग

Language: Hindi
389 Views
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