कविता
वन्य प्राणी संरक्षण
जंगल सारे ही तुम काटे जा रहे हो।
अरे भाई ये तुम ये क्या कर रहे हो।।
बस रही है बस्तियाँ खेतों में यहाँ।
वन्य प्राणियों का हक छीन रहे हो।।
शेर ,चीते , भालू गिनती के रह गए।
इनके भोजन पानी के लाले पड़ गए।।
शिकार करे किसका ये जंगलों में अब।
वन्य जीव तो धीरे – धीरे कम हो गए।।
कहाँ सुनाई देती दहाड़ वनराज की।
सदा नहीं आती हाथी के चिंघाड़ की।।
जंगलों में छा रहा सन्नाटा ही सन्नाटा।
नहीं सुनाई देती अब हु -हु सियार की।।
गोडावण के जोड़े अब धोरों में नहीं है।
कटते जा रहे जंगल सारे रौनक नहीं है।।
मतलबपरस्ती में वन्य जीव खत्म हुए।
वन्य जीवों के प्रति हम सावचेत नहीं है।।
चिंकारा, भालू, बारहसिंघा लोमड़ी सारे।
देखो संख्या में पहले से भी कम हैं सारे।।
वन्य जीवों के बचाव के उपाय खोजें हम।
वन्य जीव बचाओ ये कितने हैं प्यारे प्यारे।।
कोयल के मधुर स्वरों में गीत कैसे सुनोगे।
बाग बगीचों में कुहू कुहू के स्वर कैसे सुनोगे।।
वर्षा में नृत्य करता मयूर तुम कैसे पाओगे।
तोते की टें – टें की आवाजें तुम कैसे सुनोगे।।
राजेश कुमार शर्मा”पुरोहित”
कवि,साहित्यकार
98,पुरोहित कुटी
श्रीराम कॉलोनी
भवानीमंडी
जिला झालावाड़
राजस्थान