कविता
‘राधाकृष्ण’
मोर पंखी मुकुट सिर पर
अधर वंशी राजती है,
माल वैजंती गले में
पाँव पायल बाजती है।
केश घुँघराले घटा सम
रूप का रसपान करते,
राधिका के साथ मोहन
मग्न होकर रास रचते।
मोहिनी छवि देख राधा
मुदित मन मुस्कान भरती,
नैन मूँदे झूमती अरु
कृष्ण का उर चैन हरती।
बाँसुरी की धुन सुनाकर
श्याम ने अपना बनाया,
छीनकर सुधि राधिका की
प्रीति का सपना दिखाया।
कृष्ण राधामय हुए हैं
राधिका मुस्कान उनकी,
एक-दूजे बिन अधूरे
प्रेम ही पहचान उनकी।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’