कविता हूं मैं किसी कवि की, रसिक जनों को भाती हूं।
कवि हृदय के पावन चित में, मैं स्वच्छंद विचरती हूं
भावनाओं की पीड़ा से, शब्दों में आन निखरती हूं
विरह वेदना के आंसू में, प्रियतम की कभी जुदाई हूं
पिया मिलन के गीतों की, प्रेम से भरी रुबाई हूं
ज्ञान का असीम भंडार हूं, रिचा हूं वेद पुराण की
गीता का श्लोक हूं , आयत बाइबल और कुरान की
प्रेम श्रृंगार की थिरकन हूं, विरहाग्नि विरहन हूं
करुणा सागर की करुणा हूं, वीरों की दावानल हूं
मां की ममता पिता का साया, रौद्र रूप शिव शंकर हूं
हास्य भी हूं,भीवत्स भी हूं, अचरज और भयंकर हूं
नवरस से हूं परिपूर्ण , मैं छंदों में गाती हूं
कविता हूं मैं किसी कवि की, रसिक जनों को भाती हूं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी