कविता ही तो परंम सत्य से, रूबरू हमें कराती है
जो अंतस के दर्द अहिर्निश, गीतों में भर लाती है
नवरस और अलंकारों से, जीवन छंद सजाती है
अंतर्मन के भावों को, जो होंठों तक ले आती है
कविता ही तो गीत प्रेम के, अपनी भाषा में गाती है
मन मंथन कर दुनिया को, जीवन के सत्य बताती है
सत से जो त्रिकाल सत्य के, द्वार खोल जाती है
परंम सत्य की सत्ता का, दर्शन दिल में करवाती है
निरंकार साकार रूप में, ईश्वर से मिलवाती है
कविता गाती है सप्त स्वरों, प्राणों में वस जाती है
सुर ताल और लय में कविता,सारा संसार नचाती है
कभी हंसती मुस्कुराती कविता, गीत प्रेम के गाती है
करुणा से भरी हुई कविता, आंसू छलका जाती है
विश्व साहित्य में सार्वभौम है कविता, सत्य से भेंट कराती है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी