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12 Jan 2022 · 2 min read

कल रहूँ ना रहूँ…

कल रहूँ ना रहूँ
°~°~°~°~°
कल रहूँ ना रहूँ…
पर ये ख्वाब अभी बाकी है…

जिंदगी ढलने को करीब है,
पर ये ख्वाब अभी बाकी है,
हसरतों से भरी जिंदगी में,
द्वंद अभी बाकी है…
जीवन क्षितिज से बस,
दो पड़ाव दूर है_
जिंदगी का आखिरी सफर ।
फिर भी आस अभी बाकी है…

कल रहूँ ना रहूँ
पर ये ख्वाब अभी बाकी है…

वक़्त के नाजुक हाथों से ,
जिंदगी फिसलती है ।
सुबह-शाम हर मोड़ पर ,
एक द्वंद्व नयी होती है।,
पर इन झंझावातों को चीर कर,
आगे निकलने की तमन्ना,
अभी बाकी है…

कल रहूँ ना रहूँ
पर ये ख्वाब अभी बाकी है…

ख्वाहिशें बेहिसाब सजी है,
मगर बदलते वक्त ने भी नकाब लगा रक्खा है।
इस अन्याय घुटन के बुरे दौर में,
अपनी लेखनी को विराम दूँ कैसे,
जब तलक सीने में साँस है,
कलम की अपनी चाहत जो बाकी है…

कल रहूँ ना रहूँ
पर ये ख्वाब अभी बाकी है…

सोचता हूँ हर पल मैं यही,
मिट गया जो इस जहाँ से,
नामोनिशान तन का।
मेरी रूह भी आवाज बनकर गुनगुनाएगी,
सबके सोये अरमाँ जगाने के लिए,
बदलाव की ये आरजू जो बाकी है…

कल रहूँ ना रहूँ
पर ये ख्वाब अभी बाकी है…

एक अंतिम चाहत थी जिन्दगी की,
जिंदगी के बिछुड़ने से पहले,
मन अवधूत और समचित्त हो पाता।
जी लेने की भी,कोई खुशी न होती,
मौत का भी कोई ग़म नहीं होता ।
यही अरमान ही अभी तक जो बाकी है…

कल रहूँ ना रहूँ
फिर भी आस अभी बाकी है…

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १२ /०१ / २०२२
पौष, शुक्ल पक्ष,दशमी
२०७८, विक्रम सम्वत,बुधवार
मोबाइल न. – 8757227201

Language: Hindi
4 Likes · 2 Comments · 507 Views
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