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2 Apr 2023 · 1 min read

मित्रो जबतक बातें होंगी, जनमन में अभिमान की

मित्रो जबतक बातें होंगी, जनमन में अभिमान की
क्योंकर भर पायेगी खाई, निर्धन और धनवान की
इक दूजे के दुखों से जब, मानव ही अनभिज्ञ है तो
किसके पास समय सोचे जो, औरों के उत्थान की
गीत कहो या ग़ज़ल कहो या रच डालो चौपाई भी
आज सभी के सम्मुख चिन्ता, है अपनी पहचान की
सामाजिक प्राणी हैं हम, निज स्वार्थ सभी अब त्याग के
आओ हिलमिलकर सोचें, जन जन के हित कल्यान की
सदियों से ही विचर रहे हम, अँधियारे इस लोक में
क्यों न हमें हाय मिला वो, खोज थी जिस भगवान की
–महावीर उत्तरांचली

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