कल तक थे वो पत्थर।
कुछ तो खास है उसमें,
यूं ही नहीं हम खुद को मिटा बैठे हैं।।
है तसव्वुर या हकीकत,
जानें किस से हम दिल लगा बैठे है।।
कातिल आदाएं उनकी,
हम अपने दिल ओ जां गवां बैठे है।।
बर्बादी का मंजर देखो,
इश्क में हम सब कुछ लुटा बैठे है।।
कल तक थे वो पत्थर,
आज खुदको जो खुदा बना बैठे हैं।।
उन्हें बद्दुआ कैसे दे दें,
जो मेरे लबों पे बन के दुआ बैठे है।।
जाम लेकर कोई आए,
हम मैखाने में कब से तन्हा बैठे हैं।।
मेरे हंसने पर ना जाना,
दर्दों को हम सीने में छुपा लेते हैं।।
हम दूर ही अच्छे उनसे,
जो अफवाहों को बस हवा देते हैं।।
उनसे अल्लाह बचाए,
जो पीठ पीछे खन्जर चला देते है।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ