कलह
साची कहँ सँ बड़े बूढ़े कलह हो स काल का वासा।
घरबार उजड़ै खुद का अर दुनिया का होज्या हाँसा।।
जिस घर म्ह रहवै रोज क्लेश वो घर, घर ना रहंदा।
आपस म्ह शर्म उतरज्या छोटे बड़े का डर ना रहंदा।
गाल बकैं लठ ठावैं भई किसै कै बी सबर ना रहंदा।
दुनिया चढ़ चढ़ छातां पै देखे उस घर का तमाशा।।
कलह रह जिस घर म्ह ओड़े टोटा पां पसारै जरूर।
बनते काम बिगड़न लाग ज्यां न्यू हो ज्यावैं मजबूर।
देख कै लछण घर आल्याँ कै यारे प्यारे होज्यां दूर।
जणा जणा कटण लाग ज्या न्यू होज्या जी नै रासा।।
देख हाल अगड़ पड़ोसी बी नफरत करण लाग जावैं।
दो चार दिन तै आज्यां फेर ना लड़ाई बुझावन आवैं।
सारै गाम म्ह कै थू थू होज्या सारै जणे उणनै बिसरावैं।
आपणै हाथां इज्जत कै बट्टा ला कै काम करैं खासा।।
कहँ गुरु रणबीर सिंह शुरू म्ह किसै की मानै कोण्या।
ऊँच नीच बणै बिना आछी भुंड़ी वे पिछाणै कोण्या।
ठोकर लागै पाछै रोवैं कहँ रही अक्ल ठिकाणै कोण्या।
वा सुलक्षणा मुँह प कह दे खरी ना देवै झूठा दिलासा।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत