कलम का क्रंदन
कलम को कलम रहने दो, तलवार मत करो !
लेखन एक सन्देश हो खर-पतवार मत करो !!
सबके अपने-अपने मत हैं,
सबके अपने-अपने पथ हैं,
अगणित शिष्टजन समाज में,
मानव को मानव करने के
करते रहे प्रयास सतत हैं !
दरबारी बन कुपात्र की जयकार मत करो !
क्षुद्र तृष्णा से ग्रसित होकर प्रहार मत करो !!
घिसती रहे लेखनी जैसे चन्दन
रहे न इसमें कोई स्वार्थ बंधन
सुना दो एक अमिट चिर सन्देश
अन्यथा कौन सुनेगा रुदन ?
कौन कलम का करुण क्रंदन ?
प्रयासरत सब, पूर्ण कोई नहीं, अहंकार मत करो !
साहित्य के मार्ग पर कभी तुम अंधकार मत करो !!
– नवीन जोशी ‘नवल’