— कर्म का फल —
कर्म का फल कब मिलेगा
क्यों सोचता है तू बन्दे
यह तो उसी वक्त मिलेगा
जरा यह तू सोच रे बन्दे
मर कर कहाँ जाता है
या यह आत्मा कहाँ मिल जाती है
जिस्म तो फनाह हो जाता है
आत्मा निज धाम चली जाती है
हिसाब किताब का जो लिखा हुआ
इस जन्म में ही भुगत जाता है
कौन कहता है की मानव
किये हुए फल वहां जाके पाता है
यह कलियुग का प्रतिफल है
मिलने में देर कहाँ अब लगती है
यह दुष्टों की न्याय्शाला नही है
जो फल मिलने में वक्त लग जाता है
सोच समझ कर रे बन्दे
तू वो सारे कर्म और काम
मत कर इन हाथों से
कभी कोई गलत काम
मनुष्य की योनी में ही तो मिला है
सोच और समझ का तुझे ज्ञान
सब कुछ पाकर भी धरती पर
तो यूं न बन ओ बन्दे अनजान
अजीत कुमार तलवार
मेरठ