कम्बख्त सावन
अभी-अभी तो
तुमसे नजदीकियाँ
परवान चढ़ ही रही थी
अभी-अभी तो
किसी की चाहत के अंकुर
दिल में फूट ही रहे थे
अभी-अभी तो
समंदर की लहरें
किनारों से दोस्ती कर ही रही थी मगर
ये कम्बख्त सावन कहाँ से आ गया
तुझे दर्पण में उतार ले गया
अभी-अभी तो
सतरंगी घूंघट हटाकर
चाँद का दीदार कर ही रहा था
अभी-अभी तो
गुलाब की पंखुरियाँ
खिलना सीख ही रही थी
अभी-अभी तो
इक अजनबी का हाथ थामकर
मंज़िल तलाश रहा था मगर
ये कम्बख्त सावन कहाँ से आ गया
तुझे अपनी बाहों में उड़ा ले गया