कभी मेरे श्रृंगार से वाक़िफ होते
वो सिर्फ अपने लिए कहता,
तेरे बिन जिंदगी कुछ कम थी।
कभी मेरे श्रृंगार से वाक़िफ होते
मेरी आंखे भी नम थी।
कभी कोशिश तो की होती
मुझको मुझसे ही चुराने की
“मुझसे” वहीं छोड़ गए तुम
सिर्फ़ कोशिश की मुझको चुराने की
तुम्हारे लिए तो सिर्फ वो बाते थी
जिंदगी सिर्फ़ तुम थी सिर्फ़ तुम थी
ये बातें अब मुझे खामोश बनातीं है
तेरे बिन जिंदगी कुछ कम थी
कभी मेरे श्रृंगार से वाक़िफ होते
मेरी आंखें भी नम थी।