“कब होगा मां सबेरा”
कोख में है घर मेरा,
कब होगा मां सबेरा?
तुमसे ही सृष्टि चलती है,
जग में ऊंची है तेरी शान,
मुझसे क्या अपराध हुआ?
मुझको नहीं जरा भी ज्ञान।
तुम्हारे जैसा मैं भी हूं,
मुझको भी पीड़ा होती है,
गौर करो अपना बचपन,
तुम भी किसी की बेटी हो।
तुम्हारे संग भी ऐसा होता,
तुम क्या करती गर्भ में?
कुछ तो बोलो, मुंह तो खोलो,
क्या कहती हो इस संदर्भ में।
यदि मां ही भक्षक बन जाएं,
बिटिया जन्म कहां से पाएं?
हर कोई करे बेटे की चेष्टा,
फिर जीवन दुर्लभ हो जाए।
दया की प्रतीक हो तुम,
ममता की अंचल है तेरा,
ऐसी कलंक ना लो माथे पर,
बेटियों का कहां होगा बसेरा।
कोख में है घर मेरा,
कब होगा मां सबेरा?
राकेश चौरसिया