कई खयालों में…!
कई खयालों में मुझको, तू घोल जाती है
तेरी आदत है फिर मुझको, भूल जाती है
रंग–बिरंगी तितली सी, तू दिल छू जाती है
पकडूं कैसे तुझको तू, हरदम उड़ जाती है
कई खयालों में०…..
तेरी वो बेमानी बातें, बड़ी रूमानी हैं
खुद को समझूं मैं, इक राजा और तू रानी है
धनक सपन पलकों में बसा, तू डोल जाती है
देखूं कैसे तुझको, तू आंखों न समाती है
कई खयालों में०…..
शब्दों की तू शहजादी, मैं मौन फकीर हूं बातों का
तू फूलों की माला है, मैं धागा उलझे खयालों का
पीर सुहानी देकर तू, दिल खोल जाती है
पाऊं कैसे तुझको, तू जो हाथ न आती है
कई खयालों में०…..
पागल मैं नैनों का कैदी, तू चितचोर सयानी
मैं तो ठहरा कोरा पन्ना, तू पन्नों की कहानी
सुनाके प्रेम–कहानी, तू जी खोल जाती है
पढूं तुझे मैं कैसे, तू अनमोल सी पाती है
कई खयालों में०…..
चमकी सी तू चांदनी, मैं आवारा इन रातों का
तू ही तो है मंजिल मेरी, बंजारा मैं राहों का
किरणों के झूले पर तू, यूं झूल जाती है
देना चाहूं तुझे सहारा, दूर तू जाती है
कई खयालों में०…..
एक प्यार जीवन से पाया, सोलह तेरे श्रृंगार से
पहले था मैं भटका रही, ठांव मिली तेरे द्वार पर
प्रीत जुबानी बनकर तू मन बोल जाती है
गाऊँ कैसे तुझको, तू छंदों में न आती है
कई खयालों में०…..
–कुंवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह
*यह मेरी स्वरचित रचना है
*©सर्वाधिकार सुरक्षित