*ओ कान्हा क्यों रूठ गए हो*
ओ कान्हा क्यों रूठ गए
साँवली सुरतिया मोहन हमसे क्यों रूठ गए ।
न जाने कहाँ छिपे बैठे हो ,हमको भूल गए।
नैनों से नीर बहाते हुए ,दिन रात राधा संग गोपियाँ रोती रही।
पनघट में ढूंढ लिया वन्य प्राणी से पूछ लिया कहीं न मिला राह तकती रही।
मोर पंख हाथ लिए ,मुकुट में सजाने विरह अग्नि में जल रही।
सखी री अब तू ही बतला क्या करूँ ये मोर पंख लिए अश्रु बहाते रही।
पवन पुरवईया चल रही ,कान्हा के आने का इंतजार कर रही।
नैना ढूढे हर जगह पर ,कदम के पेड़ पत्तो में भी नजरें ढूढ रही।
न जाने क्यों हमें सताते ,तड़फाते बहुत रुलाते हो।
ओ कान्हा तेरी याद सताती, एक पल चैन नही क्यों रिझाते हो।
भटक रहा मन न जाने क्यों ,बांवरा सा हो जाता है।
हाल दिल का किसे सुनाऊँ ,कहीं किसी काम में मन नहीं लगता है।
सखी समझा रही राधा को ,जल्दी ही श्याम आ जायेंगे।
बंशी की मधुर आवाज सुना, यमुना तीरे फिर सब मिलकर रास रचायेंगे।
शशिकला व्यास✍️