मेरी चाहत रही..
मेरी चाहत रही..
चलूँ तेरे साथ
तेरा हमक़दम बन कर,
मुस्कुरा उठूं तेरे साथ
कुछ इस तरह…
खिलखिला उठें कलियां जीवन बगिया की
तेरे आगोश में आऊँ
और सदियाँ सिमट जाएं लम्हों में!!
पर..
ये महज़ चाहत ही रही
नजदीकियां बदल गई
दूरियों में…
मुस्कुराना ख्वाब हो गया
तन्हाइयों ने बसेरा
बना लिया जिंदगी में,
नाख़ुदा समझा जिसे
वो ख्वाब बन गया…
और, मैं एक बुत अपनी ख्वाहिशों का.. !!!!
हिमांशु Kulshreshtha