ऐसे मात-पिता पाए (ताटक छंद)
सुंदर घर ये देखो अपना, माँ बापू की यादे है
वही बसाता घरको देखो, जिसके नेक इरादे है |
माँ बापू ने इसे बसाया, अपने खून पसीने से
पाला पोसा सब बच्चों को, सदा लगाया सीने से |
तिनका तिनका जोड़ रहे थे, सुख की चैन नहीं सोये
करी सिलाई खुद हाथों से, बच्चों के कपडें धोये |
रूखा सुखा खाकर पाला, बिसरायी सब इच्छाएं
यही कामना रही ह्रदय में, बच्चों में खुशियाँ छाये |
गर्व हमें भी है इसका तो, ऐसे मात-पिता पाए,
त्याग किया सर्वस्व जिन्होने,शिक्षा हमें दिला पाए |
हमको जो संस्कार मिले है. वह बच्चो को दे जाए,
यही प्रार्थना करूँ ईश से, वे कर्त्तव्य निभा पाए |
(2) पीड़ित है जनता सारी
आम आदमी संकट में है,कुछ भी राह नहीं पायी
मनमानी पर उतरे नेता, आजादी उनको भायी |
बाढ़ सामने या अकाल है, महँगाई बहती जाती
आँखे पथरा रही कृषक की,खेती रास नहीं आती |
नील गगन से बादल गायब, नहीं बरसता है पानी,
इंद्रदेव भी रुष्ट हुए है, करते अपनी मनमानी |
अफरा तफरी मची हुई है, पीड़ित है जनता सारी
ताल तलैया सूख गये सब, पशुओ का मरना जारी |
कर्त्तव्यों को भुला चुके सब, बस अधिकार जताते है
शासन-सत्ता नेता-जमता. डफली खूब बजाते है |
रहा न कोई न्याय नियन्ता,अन्धा न्याय पड़े भारी
सत्य अहिंसा चले कहाँ तक, आहत है जनता सारी |
– लक्ष्मण रामानुज लडीवाला