ऐसे भयावह दौर में
बगल में खंजर दबाए
फूलों का गीत गुनगुनाते
खींसे निपोरकर
जोर की तालियाँ बजाते
भलमनसाहत के जाल में
जमाने को उलझाते।
बताओ ऐसे भयावह दौर में
कहाँ पर है
अमन-चैन और सुकून,
जब हृदय में ही नहीं कहीं पर
क्या पाप, क्या पुन।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
साहित्य और लेखन के लिए
लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त।