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27 May 2024 · 1 min read

ऐसी तो कोई जिद न थी

मुझको ऐसी उम्मीद न थी
ऐसी तो कोई जिद न थी |
थी एक छोटी सी गुदगुदी भी
तुम्हे हंसाने की कोशिश भी
मेरे मन में कोई खोट न थी
ऐसी तो कोई जिद न थी |
दुख किसी का न सह पाता
अपना दुख भी न कह पाता
मैं ऐसा हूं, जाने कैसा हूं
जाने अंजाने गलती कर जाता
रूठने जैसी कोई बात न थी
ऐसी तो कोई जिद न थी |
न जाने कब क्या कर जाऊं
किसे हंसाऊं..किसे रुलाऊं
कब कोनसा कदम बन जाए मुश्किल
खुद भी में तो समझ न पाऊं
नाराज करके खुद भी रोऊं
तुम्हे रुलाना कभी न चाहूं
यूं रुलाने की कोई जिद न थी
ऐसी तो कोई जिद न थी |
कि थी कोशिश गम को छुपाने की
मुश्किलो पर विजय पाने की
क्या पता था कि हार जाऊंगा
तुम को रुलाकर खुद रोऊंगा
चाहो गर तो सजा भी दे दो
न चाहो तो …माफ भी करदो
मुझको ऐसी उम्मीद न थी
ऐसी तो कोई जिद न थी |

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