ऐसा न हो सका
मुझे केवल तुम्हारा सुख नही जानना था।
मुझे तो जाननी थी तुम्हारी पीड़ा भी,
तुम्हारा दुख भी, तुम्हारा दर्द भी।
वो जो तुमने सबसे छुपाकर रखा
अपनी मुस्कान के नीचे।
तुम्हारी शुष्क आँखे
देखती है दिन के सैकड़ों चेहरे,
पर मुझे तो वो चेहरा बनना था
जिसे देखकर उमड़ पड़े
तुम्हारा सारा अवसाद
आँसू बनकर इन आँखों से।
वो कांधा बनना था,
जिसपर बोझ नहीं
टेक सको अपना माथा;
जिसपर मैं अपनी
होंठों की लालिमा चिपका दूँ,
और फिर तुम भूल जाओ
अपनी सारी तकलीफ, चिंता, फिक्र।
पर ऐसा न हो सका,
क्योंकि तुम उलझे रहे
भविष्य की उन परिस्थितियों को सँवारने में
जो कभी नहीं घटित होंगी!
और इन सब मे नज़रंदाज़ कर दिया तुमने
हमारे खूबसूरत आज को!!