एक हास्य व्यंग रचना
आ लौट कर आजा मेरे हसबैंड,
नही तो तेरा वही बैंड बजा दूंगी।
तूने समझा मुझे होगा कमजोर,
ऐसी गलती न करना कोई और
नही तो वही आकर मै
तेरा बैंड बजा दूंगी।
आ लौट कर आजा मेरे हसबैंड,,,
तूने साड़ी अभी तक मुझे दिलाई,
उसकी मैचिंग सैंडल भी न दिलाई
नही तो वही आकर मै
पुराने सैंडल से बजा दूंगी।
आ लौट कर आजा मेरे हसबैंड,,,
तूने झूठे करे है मुझसे वादे
उनमें से पूरे हुए नही आधे।
तू समझना मुझे न कमजोर,
तेरी वही पिटाई करा दूंगी
आ लौट कर आजा मेरे हसबैंड,,,
तू समझ न मुझको अबला नारी,
मैने तुझ से कभी न बाजी हारी।
मै बन गई हूं अब पहलवान,
तुझे वही पर चित्त करा दूंगी।
आ लौट कर आजा मेरे हसबैंड,,,,,
तू पड़ोसन से मीठी बाते करता,
उसी को हर दम ताकता रहता।
इन बातो को तू अब छोड़,
नही तो वही पर नाच नचा दूंगी।
आ लौटे के आजा मेरे हसबैंड,,,,,
अगर तू लौट कर नहीं आया,
मै अपने मायके चली जाऊंगी।
फिर कभी न लौट कर आऊंगी,
जब तू आयेगा अपनी सुसराल,
तुझे वही पर मै पिटवा दूंगी।
आ लौट कर आजा मेरे हसबैंड,,,,
आर के रस्तोगी गुरुग्राम