एक फूल….
कांटों में एक फूल खिले, मुस्कुराये ।
गुलदस्ते फूलों के हमें नहीं भाये ।।
चँचल चौराहे पर ठिठक गई काया,
अनचाही भीड़ देख अंतर अकुलाया,
तन की जिज्ञासा जब मन को भरमाये,
कांटों में एक फूल खिले, मुस्कुराये ।,
गुलदस्ते फूलों के हमें नहीं भाये ।।
चाहों की घटा बार-बार उमड़ आयी,
अपनी आवाज लगे खुद को परायी ।
अर्थहीन शब्द-झुंड काम नहीं आये –
कांटों में एक फूल खिले, मुस्कुराये ।
गुलदस्ते फूलों के हमें नहीं भाये ।।
ममता का कोश बंधु ! सीमित है छोटा,
उतना हीं बाँट नहीं गला जाय घोंटा,
आमद से अधिक खर्च कैसे निभ पाये,
कांटों में एक फूल खिले, मुस्कुराये ।
गुलदस्ते फूलों के हमें नहीं भाये ।।
नेह टूक-टूक पड़े, रोटी के लाले,
विधा के द्धार टँगे मन भटके ताले,
कैसे मन पीड़ा से पिण्ड छुड़ा पाये,
कांटों में एक फूल खिले, मुस्कुराये ।
गुलदस्ते फूलों के हमें नहीं भाये ।।
अपने सब छुट गए, पड़ा मै अकेला,
अनजानी भीड़ का लगा है मेला,
प्रेम पाश टुटी हुई जुड़ कैसे जाये,
कांटों में एक फूल खिले, मुस्कुराये ।
गुलदस्ते फूलों के हमें नहीं भाये ।।
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