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23 May 2024 · 1 min read

एक पेड़ की पीड़ा

ख़ुद बख़ुद हूँ उगता रहता,
न किसी से हूँ कुछ माँगता,
ख़ुद से हूँ अपना पेट भरता,
न किसी को हूँ नुक़सान देता,
फिर भी मुझे तुम…
क्यूँ काटते हो?

फल फूल हूँ तुम्हे देता रहता,
थके हारे आओ तो छाया देता,
बीमार हो जाओ तो दवा देता,
प्रकृति का प्यास भी हूँ बुझाता,
फिर भी मुझे तुम…
क्यूँ काटते हो?

तुम्हारे छोड़े साँसों को हूँ लेता,
फिर तुम्हें ऑक्सीजन हूँ देता,
तुम्हारे हर सितम को हूँ सहता,
तुम इंसानों की तरह नहीं रोता,
फिर भी मुझे तुम…
क्यूँ काटते हो?

तुम से भला हैवान है होता,
मेरी पत्तियों से पेट है भरता,
पर हमारी जान नहीं है लेता,
काश इंसान कुछ सीख पाता,
फिर भी मुझे तुम…
क्यूँ काटते हो?

Language: Hindi
76 Views
Books from Ahtesham Ahmad
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