एक दिए ने रक्खा मान उजालों का।
गज़ल- (मीर बहर पर)
22 22 22 22 22 2
एक दिए ने रक्खा मान उजालों का।
झुका दिया है जिसने शीश अँधेरों का।
स्वाद बखान नहीं पाये श्रीराम स्वयं,
माता शबरी के उन जूठे बेरों का।
एकाकी परिवारों में जो रहते हैं,
मतलब वो क्या जाने रिश्ते नातों का।
पाक परस्ती करते हैं भारतवासी,
काम नहीं है ऐसे अब गद्दारों का।
ऊँच नीच का भेद न हो मकसद पूरा,
मंदिर मस्जिद गिरजा औ गुरुद्वारों का।
मुफलिस की दुनियाँ में इक दिन जीना भी,
मर जाना है ह्वाइट कालर वालों का।
महनत मजदूरी करके खुश होते हैं,
मिल जाना काफी दो वक्त निवालों का।
भारत माँ की बेदी पर कुर्बान हुए।
राष्ट्र गान करता उन माँ के लालों का।
प्यार लिया औ प्यार दिया प्रेमी बनकर,
नाम अमर है कृष्ण राधिका ग्वालों का,
…..✍️ प्रेमी
इस बहर मे 22 को 112/211/121 भी लिया जा सकता है, पर लय बाधित नहीं होनी चाहिए। तभी यह मान्य है।