“एक किताब”
एक किताब ऐसी हो
जो हमें
किसी त्रासदी की तरह
झकझोर दे,
किसी ऐसे व्यक्ति की
जिसे हम खुद से भी
ज्यादा प्यार करते हों
मौत की तरह
असर छोड़ दे।
एक किताब ऐसी हो
जिससे लगे
कि हमारी रक्षा में वो
खास तौर पर तैनात है,
उसमें हर सवाल का
जवाब देने की औकात है।
एक किताब
उस कुल्हाड़ी की तरह हों
जिससे हम
अपने भीतर उग चुके
बेकार जंगल-झाड़ी को
साफ कर सकें,
अपनी तरक्की-प्रगति की
माप कर सकें।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति