Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Jul 2024 · 1 min read

एक अधूरी सी दास्तान मिलेगी, जिसकी अनकही में तुम खो जाओगे।

ये ज़िन्दगी जैसी दिखती है, क्या इसे कभी वैसा पाओगे,
कुछ पहेलियों को सुलझाने में, तुम खुद हीं उलझ जाओगे।
नज़ारे तो बिखरे पड़े हैं बहुत, पर तस्वीरों में किसे सजाओगे,
क्षणभंगुर हैं दृश्य यहां, तुम किस दृश्य में खुद को पाओगे।
वो समंदर तूफानों का सबब सा कभी, तो कभी प्रशांत में उसके समाओगे,
जीवन की लहरों से चोटिल हुए तो, इसके साहिलों पर वक़्त बिताओगे।
यूँ तो सूरज सुबह का सारथी सा लगे, पर व्यथा रात की क्या सुन पाओगे,
जो आँखें अंधेरों में सुकूं पाती हैं, उन्हें कैसे उजालों की चुभन से बचाओगे।
वो जंगल खामोशी में तठस्थ सा खड़ा, पर भरा है बेचैनियों से ये समझ पाओगे,
जिसकी चीख़ें सघनता में निशब्द गूंजती हैं, कैसे उस गूंज से रिश्ता निभाओगे।
जिस सितारे ने रौशन की अँधेरी राहें, उसी के टूटने की आस लगाओगे,
जाने किसने कह दिया ये की, ‘जिन्हें आँखों में बसाओगे, उन्हीं के टूटने पर दुआएं पूरी कर पाओगे।’
अब जो आईने से अक्स टकराये तो, वहाँ खुद को ढूंढ़ते रह जाओगे,
कभी मुस्कुराहटों भरा एक दरियाँ था जहां, अब एक कतरा देखने को तरस जाओगे।
जहां पलों में कितनी हीं कहानियां बसी थी, वहाँ एक किस्सा भी ना सुन पाओगे,
बस एक अधूरी सी दास्तान मिलेगी, जिसकी अनकही में तुम खो जाओगे।

3 Likes · 72 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Manisha Manjari
View all
You may also like:
काश इतनी शिद्दत से कुछ और चाहा होता
काश इतनी शिद्दत से कुछ और चाहा होता
©️ दामिनी नारायण सिंह
मन  के  दीये  जलाओ  रे।
मन के दीये जलाओ रे।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
पूस की रात
पूस की रात
Atul "Krishn"
पत्रकारिता सामाजिक दर्पण
पत्रकारिता सामाजिक दर्पण
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
कुंडलिया छंद विधान ( कुंडलिया छंद में ही )
कुंडलिया छंद विधान ( कुंडलिया छंद में ही )
Subhash Singhai
कर
कर
Neelam Sharma
रोम-रोम में राम....
रोम-रोम में राम....
डॉ.सीमा अग्रवाल
जब में थक जाता और थककर रुक जाना चाहता , तो मुझे उत्सुकता होत
जब में थक जाता और थककर रुक जाना चाहता , तो मुझे उत्सुकता होत
पूर्वार्थ
सकारात्मक सोच
सकारात्मक सोच
Dr fauzia Naseem shad
तोड़ डालो ये परम्परा
तोड़ डालो ये परम्परा
VINOD CHAUHAN
सच्ची होली
सच्ची होली
Mukesh Kumar Rishi Verma
कभी बहुत होकर भी कुछ नहीं सा लगता है,
कभी बहुत होकर भी कुछ नहीं सा लगता है,
Sunil Maheshwari
सत्य कहाँ ?
सत्य कहाँ ?
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
भारत देश
भारत देश
लक्ष्मी सिंह
* लक्ष्य सही होना चाहिए।*
* लक्ष्य सही होना चाहिए।*
नेताम आर सी
*टूटी मेज (बाल कविता)*
*टूटी मेज (बाल कविता)*
Ravi Prakash
‘ विरोधरस ‘---5. तेवरी में विरोधरस -- रमेशराज
‘ विरोधरस ‘---5. तेवरी में विरोधरस -- रमेशराज
कवि रमेशराज
सब कुछ खोजने के करीब पहुंच गया इंसान बस
सब कुछ खोजने के करीब पहुंच गया इंसान बस
Ashwini sharma
छल.....
छल.....
sushil sarna
अमूक दोस्त ।
अमूक दोस्त ।
SATPAL CHAUHAN
और कितनें पन्ने गम के लिख रखे है साँवरे
और कितनें पन्ने गम के लिख रखे है साँवरे
Sonu sugandh
संघर्ष ,संघर्ष, संघर्ष करना!
संघर्ष ,संघर्ष, संघर्ष करना!
Buddha Prakash
बेटा
बेटा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
नारी
नारी
Dr.Pratibha Prakash
2898.*पूर्णिका*
2898.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कविता
कविता
Shweta Soni
"आँखों पर हरी पन्नी लगाए बैठे लोगों को सावन की संभावित सौगात
*प्रणय*
Still I Rise!
Still I Rise!
R. H. SRIDEVI
वो मेरा है
वो मेरा है
Rajender Kumar Miraaj
"लाजिमी"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...